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भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, किसी को जमीन से बेदखल नहीं कर सकते

22 साल बाद भी मुआवजा नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-300-ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करते हुए दिया ऐतिहासिक आदेश। जानें, बेंगलुरु-मैसुरु प्रोजेक्ट में भू-स्वामियों के हक और 2019 के बाजार मूल्य पर मुआवजे का नया नियम

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भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, किसी को जमीन से बेदखल नहीं कर सकते
भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, किसी को जमीन से बेदखल नहीं कर सकते

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में संपत्ति के अधिकार से जुड़े एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद-300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना कानूनी प्रक्रिया और पर्याप्त मुआवजे के किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़े एक मामले में यह फैसला सुनाया।

संपत्ति का अधिकार: मानव और संवैधानिक अधिकार

संपत्ति का अधिकार, जो 44वें संविधान संशोधन (1978) के बाद मौलिक अधिकार नहीं रहा, अब भी संवैधानिक अधिकार और मानव अधिकार के रूप में मौजूद है। संविधान का अनुच्छेद-300-ए यह स्पष्ट करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी अधिकार के बिना उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जाएगा।

बेंगलुरु-मैसुरु प्रोजेक्ट और बेदखली का मामला

बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण में कानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन का यह मामला 2003 से लंबित था। कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) ने जनवरी 2003 में प्रारंभिक अधिसूचना जारी की और नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं की जमीन पर कब्जा कर लिया।

लेकिन समस्या यह थी कि जमीन मालिकों को 22 वर्षों तक मुआवजा नहीं मिला। अपीलकर्ताओं ने बार-बार अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन राज्य और KIADB अधिकारियों की लापरवाही के कारण उन्हें न्याय नहीं मिल पाया।

मुआवजे के निर्धारण में देरी

अदालत ने पाया कि मुआवजा प्रदान करने में अपीलकर्ताओं की ओर से कोई देरी नहीं की गई। इसके विपरीत, राज्य और संबंधित अधिकारियों की सुस्त प्रक्रिया इसके लिए जिम्मेदार थी। जब अवमानना कार्यवाही शुरू हुई, तब जाकर 22 अप्रैल 2019 को विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने अधिग्रहीत भूमि का बाजार मूल्य 2011 के दिशानिर्देश मूल्यों के आधार पर निर्धारित किया।

2003 के बाजार मूल्य पर मुआवजा: न्याय का मजाक

सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि अगर मुआवजा 2003 के बाजार मूल्य पर दिया गया तो यह न्याय का मजाक होगा। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए निर्देश दिया कि मुआवजा 2019 के बाजार मूल्य के आधार पर निर्धारित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

  • मुआवजे का पुनर्निर्धारण: सुप्रीम कोर्ट ने SLAO को निर्देश दिया कि वे 22 अप्रैल 2019 के बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजे का पुनर्निर्धारण करें।
  • दो महीने में घोषणा: SLAO को यह निर्देश दिया गया कि वे पक्षकारों को सुनने के बाद दो महीने के भीतर मुआवजे की घोषणा करें।
  • अपील का अधिकार: पीड़ित पक्षकारों को नए मुआवजे को चुनौती देने का अधिकार दिया जाएगा।

संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का संदेश

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल संपत्ति के अधिकार को मजबूत करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बिना उचित मुआवजा और कानूनी प्रक्रिया के बेदखल नहीं किया जा सकता। यह फैसला कल्याणकारी राज्य की विचारधारा के अनुरूप है और संविधान के अनुच्छेद-300-ए के महत्व को रेखांकित करता है।

प्रश्न 1: क्या संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार है?
उत्तर: नहीं, 44वें संविधान संशोधन (1978) के बाद संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रहा। यह अब संविधान के अनुच्छेद-300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार है।

प्रश्न 2: सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार पर क्या टिप्पणी की?
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक और मानव अधिकार है। बिना कानूनी प्रक्रिया और पर्याप्त मुआवजे के किसी को उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3: बेंगलुरु-मैसुरु प्रोजेक्ट के मामले में क्या समस्या थी?
उत्तर: इस मामले में 2003 में भूमि अधिग्रहण किया गया, लेकिन जमीन मालिकों को 22 वर्षों तक उचित मुआवजा नहीं दिया गया।

प्रश्न 4: सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के निर्धारण के लिए क्या निर्देश दिए?
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि मुआवजा 2019 के बाजार मूल्य के आधार पर पुनर्निर्धारित किया जाए और दो महीने के भीतर इसकी घोषणा की जाए।

प्रश्न 5: अनुच्छेद-300-ए क्या कहता है?
उत्तर: अनुच्छेद-300-ए कहता है कि कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6: सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के निर्धारण में SLAO को क्या निर्देश दिए?
उत्तर: SLAO को निर्देश दिया गया कि वे 2019 के बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजे का निर्धारण करें और पक्षकारों को सुनने के बाद घोषणा करें।

प्रश्न 7: अगर मुआवजा 2003 के बाजार मूल्य पर दिया जाता, तो क्या होता?
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना न्याय का मजाक और संविधान के अनुच्छेद-300-ए का उल्लंघन होता।

प्रश्न 8: इस फैसले का क्या महत्व है?
उत्तर: यह फैसला संपत्ति के संवैधानिक अधिकार को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को उनकी संपत्ति के लिए न्यायसंगत मुआवजा मिले।

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