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High Court का बड़ा फैसला, बिना शादी के लिव-इन में रह सकते हैं कपल, कोई नहीं लगा सकता रोक

लिव-इन रिलेशनशिप पर ऐतिहासिक फैसला! कोर्ट ने बालिग जोड़े को दी कानूनी मान्यता, कहा- "यह संविधान द्वारा दिया गया उनका अधिकार है।" जानें कैसे यह फैसला बदल सकता है समाज और कानून की सोच

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High Court का बड़ा फैसला, बिना शादी के लिव-इन में रह सकते हैं कपल, कोई नहीं लगा सकता रोक
High Court का बड़ा फैसला, बिना शादी के लिव-इन में रह सकते हैं कपल, कोई नहीं लगा सकता रोक

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक बालिग जोड़े को बिना विवाह किए एक साथ रहने की अनुमति दी है। यह फैसला जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने सुनाया, जिसमें कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बालिग व्यक्तियों को अपनी पसंद से जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस अधिकार को बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित किया जाना चाहिए।

बालिग जोड़े को अपनी पसंद का अधिकार

इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें साथ रहने की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि दोनों याचिकाकर्ता 18 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और कानूनी रूप से बालिग हैं। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के तहत हर बालिग को अपनी पसंद से जीवन जीने का अधिकार है।

लिव-इन रिलेशनशिप पर समाज और कानून का नजरिया

लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) पर समाज में लंबे समय से बहस चल रही है। भारतीय समाज में इसे अभी भी कुछ लोग सामाजिक और नैतिक दृष्टि से स्वीकार नहीं करते। हालांकि, न्यायालय का यह फैसला आधुनिक विचारधारा और संविधान में निहित व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

कोर्ट ने कहा कि संविधान हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार की गारंटी देता है। यदि दो बालिग अपनी मर्जी से एक साथ रहना चाहते हैं, तो इसमें किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप अनुचित है।

फैसले के प्रभाव: कानून और समाज के बीच संतुलन

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका धीरे-धीरे व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को प्राथमिकता दे रही है। लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों में इस प्रकार के फैसले न केवल जोड़ों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को भी रेखांकित करते हैं।

इसके अलावा, कोर्ट का यह निर्णय भविष्य में ऐसे अन्य मामलों के लिए नजीर साबित हो सकता है, जहां जोड़े अपनी पसंद से जीवन जीने के अधिकार की रक्षा के लिए न्यायालय का रुख करते हैं।

संवैधानिक अधिकारों की पुष्टि

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है, जिसमें अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता शामिल है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी प्रकार की सामाजिक या पारिवारिक बाधाओं के बावजूद, यह अधिकार बरकरार रहना चाहिए।

कोर्ट के आदेश में सुरक्षा का प्रावधान

याचिकाकर्ताओं ने यह भी आशंका व्यक्त की थी कि उनके परिवार और समाज के अन्य लोग उनके फैसले में हस्तक्षेप कर सकते हैं। इस पर कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जोड़े को किसी भी प्रकार की बाधा या धमकी का सामना न करना पड़े।

यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन: यह फैसला संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करता है।
  • लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता: यह समाज में लिव-इन रिलेशनशिप को एक नई वैधता प्रदान करता है।
  • आधुनिक सोच को बढ़ावा: इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका आधुनिक विचारधारा और व्यक्तिगत अधिकारों को महत्व देती है।

समाज में बदलाव की उम्मीद

हालांकि इस फैसले से समाज में बदलाव रातोंरात नहीं आएगा, लेकिन यह एक सकारात्मक शुरुआत है। समय के साथ, इस तरह के फैसले सामाजिक मान्यताओं में बदलाव लाने में सहायक हो सकते हैं।

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